भारत में कम क्यों नहीं हो रही महंगाई मानसून में भी क्यों आसमान पर हैं खाद्य पदार्थों के दाम?

Inflation

बढ़ती महंगाई से लोग परेशान।

भारत में फसलों को प्रभावित करने वाले प्रतिकूल मौसम में भी खाद्य मुद्रास्फीति की दर काफी अधिक है। नवंबर 2023 से मुद्रास्फीति की दर लगातार 8 फीसदी से अधिक बनी हुई है। इस बार मानसून के जल्दी आने, अच्छी बारिश होने की भविष्यवाणी भी की गई थी। जिसके बाद माना जा रहा था कि खाद्य पदार्थों की कीमतें कम हो जाएंगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। बढ़ी हुई खाद्य पदार्थों की कीमतें उपभोक्ता मूल्य की टोकरी का आधा हिस्सा हैं। केंद्रीय बैंक ने मुद्रास्फीति की दर 4 फीसदी से अधिक लक्ष्य पर रखी है, जिसके कारण ब्याज दरों में कमी नहीं हो रही है। अक्सर सवाल लोगों के जेहन में होता है कि किन कारणों से मुद्रास्फीति की दरों में इजाफा हो रहा है?

पिछले साल कम हुई थी बारिश

पिछले साल उम्मीद से कम बारिश हुई थी। जिसके कारण दालों, सब्जियों और दूसरी फसलों की कम पैदावार हुई। इससे सीधा असर इनकी सप्लाई पर भी पड़ा। इस साल जो भीषण गर्मी पड़ रही है। उसकी वजह से तैयार हुई और स्टोरेज सब्जियों को काफी नुकसान पहुंचा है। इस बार 4 से 9 डिग्री तक अधिक तापमान दर्ज किया गया है। जिसका सीधी असर बैंगन, पालक, टमाटर और प्याज जैसी फसलों की बुआई पर पड़ा है। इसकी वजह से कम बुआई हुई है। किसान मानसून की बारिश से पहले अमूमन सब्जियों की पौध तैयार कर लेते हैं। लेकिन इस बार अधिक गर्मी, पानी की कमी ने पौध रोपण और पुन: रोपण को बुरी तरह प्रभावित किया है। हालांकि समय से पहले आया मानसून भी लोगों के लिए मददगार साबित नहीं हो सका।

 

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पश्चिमी राज्य महाराष्ट्र की बात करें, तो समय से पहले मानसून तो आया, लेकिन हर साल के बजाय इस बार 18 फीसदी से कम बारिश दर्ज की गई है। कमजोर मानसून के कारण गर्मियों में बोई जाने वाली फसलों पर सीधा असर दिखा है। जून में कुछ ही जगहों पर बारिश हुई है, वो भी छिटपुट। भारत के मौसम विज्ञान विभाग ने इस बार औसत से काफी अधिक बारिश की भविष्यवाणी जारी की है। जिससे किसानों को काफी उम्मीदें जगी हैं। लेकिन आम आदमी के लिए बड़ा सवाल ये है कि खाद्य पदार्थों की कीमतें कब कम होंगी? अगर मानसून ठीक से सक्रिय होकर पूरे देश को कवर करता है तो सब्जियों की कीमतें कम हो सकती हैं।

बाढ़ और सूखे के कारण भी आपूर्ति पर हो सकता है असर

हालांकि बाढ़ या सूखा भी कीमतों को प्रभावित कर सकता है। इससे आपूर्ति पर असर पड़ सकता है। माना जा रहा है कि सही आपूर्ति नहीं होने से अनाज, दाल और दूध की कीमतें कम नहीं हो रही हैं। गेहूं की सप्लाई भी धीमी है। न ही सरकार आयात कर रही है। चावल के दाम भी बढ़ सकते हैं। क्योंकि धान का इस बार समर्थन मूल्य 5 फीसदी से अधिक बढ़ाया गया है। सरकार लगातार चीनी, प्याज, चावल और गेहूं की कीमतों को कम करने के प्रयास कर रही है। लेकिन ये उपाय कारगर नहीं दिख रहे। केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को ग्रामीण क्षेत्रों में काफी नुकसान इस बार आम चुनाव में झेलना पड़ा है। अब प्रमुख कृषि राज्यों में भी चुनाव नजदीक आ रहे हैं। जिसके कारण सरकार भी फसलों की कीमतों में इजाफा कर सकती है।