आलू, आम एवं शाकभाजी फसलों को समसामयिक रोगों एवं व्याधियों से बचाने के उद्देश्य से जिला उद्यान अधिकारी ने जारी की एडवाइजरी।

गौतमबुद्धनगर 19 दिसम्बर, 2022

जिला उद्यान अधिकारी गौतमबुद्धनगर शिवानी तोमर ने जानकारी देते हुये बताया कि प्रदेश में आलू, आम, केला एवं शाकभाजी फसलों की गुणवत्तायुक्त उत्पादन के लिए सम-सामयिक महत्व के रोगों/व्याधियों को समय से नियंत्रण किया जाना नितान्त आवश्यक है। उन्होंने बताया कि मौसम विभाग द्वारा प्रदेश में तापमान में गिरावट, कोहरा, की सम्भावना व्यक्त की गयी है। ऐसी स्थिती में औद्यानिक फसलों को प्रतिकूल मौसम में रोगों/व्याधियों से बचाये जाने के लिए उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग, उ0प्र0, लखनऊ द्वारा एडवाइजरी जारी की गयी है।

उन्होंने बताया कि प्रदेश में वर्तमान वित्तीय वर्ष में लगभग 6 लाख हेक्टेयर आलू अच्छादन सम्भावित है। वातावरण में तापमान में गिरावट एवं बूंदा-बांदी की स्थिति में आलू की फसल पिछेती झुलसा रोग के प्रति अत्यन्त संवेदनशील है। प्रतिकूल मौसम विशेषकर बदलीयुक्त बूंदा-बांदी एवं नम वातावरण में झुलसा रोग का प्रकोप बहुत तेजी से फैलता है तथा फसल को भारी क्षति पहुँचती है। पिछेती झुलसा रोग के प्रकोप से पत्तियाॅ सिरे से झुलसना प्रारम्भ होती हैं, जो तीव्रगति से फैलती हैं। र्पित्तयों पर भूरे काले रंग के जलीय धब्बे बनते हैं तथा पत्तियों के निचली सतह पर रूई की तरह फफॅूद दिखाई देती है।

बदलीयुक्त 80 प्रतिशत से अधिक आर्द्र वातावरण एवं 10-20 डिग्री सेन्टीग्रेड तापक्रम पर इस रोग का प्रकोप बहुत तेजी से होता है और 2 से 4 दिनों के अन्दर ही सम्पूर्ण फसल नष्ट हो जाती है। आलू की फसल को अगेती व पिछेती झुलसा रोग से बचाने के लिए जिंक मैगनीज कार्बामेट 2.0 से 2.5 कि0ग्रा0 अथवा मैंकोजेब 2 से 2.5 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टर की दर से 800 से 1000 ली0 पानी में घोल बनाकर छिड़काव किया जाये तथा माहू कीट के प्रकोप की स्थिति में नियंत्रण के लिए दूसरे छिड़काव में फफॅूदीनाशक के साथ कीट नाशक जैसं-डायमेथोएट 1.0 ली0 प्रति हेक्टेयर की दर से मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। जिन खेतो में पिछेती झुलसा रोग का प्रकोप हो गया हो तो ऐसी स्थिति में रोकथाम के लिये अन्तःग्राही (सिस्टेमिक) फफॅूद नाशक मेटोलेक्जिल युक्त रसायन 2.5 कि0ग्रा0 अथवा साईमोक्जेनिल फफँूदनाशक युक्त रसायन 3.0 कि0ग्रा0 प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी जाती है।

उन्होंने यह भी बताया कि प्रदेश में आम की अच्छी उत्पादकता सुनिश्चित करने के लिए गुजिया कीट (मैंगो मिलीबग) से बचाया जाना अत्यन्त आवश्यक है। इस कीट से आम की फसल को काफी क्षति पहुँचती है। इसके शिशु कीट (निम्फ) को पेड़ों पर चढ़ने से रोकने के लिए माह दिसम्बर में आम के पेड़ के मुख्य तने पर भूमि से 30-50 से0मी0 की ऊँचाई पर 4000 गेज की पालीथीन शीट की 25 सेमी0 चैड़ी पट्टी को तने के चारों ओर लपेट कर ऊपर व नीचे सुतली से बांध कर पाॅलीथीन शीट के ऊपरी व निचली हिस्से पर ग्रीस लगा देना चाहिए। कीट के नियन्त्रण के लिए जनवरी के प्रथम सप्ताह से 15-15 दिन के अन्तर पर दो बार क्लोरीपाइरीफाॅस (1.5 प्रतिशत) चूर्ण 250 ग्राम प्रति पेड़ के हिसाब से तने के चारों बुरकाव करना चाहिए। अधिक प्रकोप की दशा में यदि कीट पेड़ों पर चढ़ जाते हैं तो ऐसी स्थिति में कारबोसल्फान अथवा डायमेथोएट 2.0 मि0ली0 दवा को प्रति ली0 पानी में घोल बनाकर आवश्यकतानुसार छिड़काव करें।

प्रदेश में तराई क्षेत्रों में केला की खेती व्यवसायिक स्तर पर तेजी से की जा रही है। वातावरण में पाला पड़ने के कारण केले की फसल को काफी नुकसान पहुँचता है। इसी प्रकार अन्य सब्जियाँ यथा-मिर्च, टमाटर, मटर आदि फसलों पर भी कम तापमान एवं कोहरी, पाला एवं बूंदा-बांदी से भारी नुकसान पहुँचता है। ऐसी स्थिति में किसान भाइयों को सलाह दी जाती है कि फसल को पाले से बचाँए तथा आवश्यकतानुसार फसलों में नमी बनाये रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई की जाय। पौधशाला के छोटे पौधों को पाले, कोहरे से बचाये जाने के लिए उद्यानों को पाॅलीथीन अथवा टाट से ढंकना चाहिए।
कीटनाशक के प्रयोग में बरती जाने वाली सावधानियाँ –
1. कीटनाशक के डिब्बों को बच्चों व जानवरों की पहुँच से दूर रखना चाहिए।
2. कीटनाशक का छिड़काव करते समय हाथों में दस्ताने, मुँह को मास्क व आँखों को चश्मा पहनकर ढक लेना चाहिए, जिससे कीटनाशी त्वचा व आँखों में न जाय।*
3. कीटनाशक का छिड़काव शाम के समय जब हवा का वेग अधिक न हो तब करना चाहिए अथवा हवा चलने की विपरीत दिशा में खड़े होकर करना चाहिए।*
4. कीटनाशक के खाली पाउच /डिब्बों को मिट्अी में दबा देना चाहिए। राकेश चौहान जिला सूचना अधिकारी गौतमबुद्धनगर।