हो सकता हूं मेरी बात आज के नए जमाने के लोगों को बुरी लगे

मेरा नाम पूजा बिष्ट है और मैं उत्तराखंड के छोटे से गांव चमोली से हूं बचपन से ही मैं अपने परिवार के साथ रहती थी जिसमें मेरे माता-पिता और भाई बहन थे
आगे की पढ़ाई करने के लिए मैं दिल्ली चली गई और आज दिल्ली में मैं बतौर इंटीरियर डिजाइनर काम करती हूं
मेरा मुख्य काम अमीर लोगों के लिए घर को अच्छे से डिजाइन करना है कोण का एक-एक उपयोग कैसे हो घर में कौन सा कैमरा किसके लिए होना चाहिए यह सारी बातें मैं डिसाइड करती हूं
लेकिन मुझे एक बात का दुख आज भी होता है कि यह अमीर लोग अपने स्टेटस को मेंटेन करने के लिए और दिखावा करने के लिए अपने घर में अपने चार साल पांच साल के बच्चों के लिए एक अलग से कमरा बनाते हैं
मुझे यह बात शुरू से ही नहीं पसंद थी क्योंकि मैं कैसे परिवार से थी जहां पर हम सब एक ही कमरे में रहते थे
एक ही कमरे में खाना एक ही कमरे में सोना एक ही कमरे में बात करना एक ही कमरे में लड़ाई करना यह हमारे जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा था
लेकिन जब मैं यहां दिल्ली आई और और आधुनिकता की चक्र चांद में अंधे हुए लोगों को दिखा तो मैंने पाया कि यहां पर लोग अपने 4 साल 5 साल 6 साल के बच्चे के लिए एक अलग से रूम बनाते हैं और बोलते हैं की बच्चों की परिवेश के लिए यह चीज अच्छी है
उन्हें कैसा वातावरण मिलता है जहां पर उन्हें प्राइवेसी मिलती है वह जो चाहे वह कर सकते हैं
पति-पत्नी दोनों नौकरी पर जाते हैं उसे समय बच्चा स्कूल जाता है पर जब दोनों घर आते हैं तो बच्चा घर पर रहता है और अपने कमरे में रहता है खाना खाने के लिए आता है और फिर अपने कमरे में जाता है
मैंने कुछ कपल्स बारे में बात की तो उन्होंने मुझे बोला आज के एनवायरनमेंट के लिए यह जरूरी है
और वह लोग पूरे तरीके से इस बात का समर्थन करते हैं कि घर में उनके छोटे बच्चों के लिए एक अलग से रूम होना चाहिए
पर मेरा मानना है कि अगर इतनी छोटी सी उम्र में आप अपने बच्चों को अपने से अलग रखेंगे तो सबसे बड़ी दिक्कत यह आएगी कि आपका बच्चा जल्दी सोशल नहीं होगा और उसे बाहर घूमने मिलने में दिक्कत होगी जिसकी वजह से वह अन्य बच्चों की अपेक्षा पढ़ाई में तो हो सकता हो तेज रहे पर जिंदगी जीने में वह असफल रहेगा
वह एक रोबोट की तरह होगा जिसे बाहरी दुनिया में कैसे जिया जाए नहीं पता सिर्फ यह पता है कि इंस्ट्रक्शन का फॉलो कैसे करना है
सिर्फ यही नहीं यह बच्चे जब बड़े होते हैं तब उनके माता-पिता और उनके बीच एक तालमेल नहीं बैठता और ना ही यह अपने माता-पिता के साथ एक इमोशनल बॉन्डिंग बना पाते हैं
फिर आगे की पढ़ाई के लिए बाहर जाना और जहां जाते हैं वहीं पर बस जाते हैं और फिर अंत समय में जो माता-पिता आधुनिक बना रहे थे अब उन्हीं को दिक्कत होना शुरू होती है
उनके अंतिम समय में उनके बच्चे उनके साथ नहीं रहते क्योंकि अपने माता-पिता के साथ उनका कोई भी अटैचमेंट नहीं रहता
यदि आप बहुत अमीर हैं आपके पास बहुत पैसा है तब तो यह चीज आपके लिए जायज है लेकिन अगर आप एक मिडिल क्लास फैमिली से हैं और आप चाहते हैं कि आपके साथ ऐसा ना हो तो अमीरी का दिखावा करने से बचे हैं और अपने बच्चों को कम से कम बचपन में अपने साथरखें
उनका बचपन छीना आपके लिए सबसे बड़ा गुनाह है
जिसका असर आपको आपके बुढ़ापे में भोगना पड़ेगा
अगर बच्चा आपके साथ सो रहा है आपके साथ उठ रहा है आपके साथ खेल रहा है तो उसका आपके साथ एक गहरा रिश्ता बन जाएगा और यह रिश्ता इमोशनल रिश्ते में बदल जाएगा जिसका मतलब यह होता है आपको छोटी सी भी तकलीफ हो तो आपकी संतान आपको देखकर तड़प उठेगी वह कितना भी बुरा हो अगर आपको दिक्कत है तो वह आपके लिए खड़ा रहेगा
लेकिन यदि आप बचपन से ही उसे अपने आप से अलग कर देंगे तो वह इमोशनल बॉन्डिंग कभी बिल्ड ही नहीं हो पाएगी और फिर आपको लगेगा कि आपके परवरिश में कोई कमीहै
इस पेज के माध्यम से मैं आप सभी लोगों से यह पूछना चाहती हूं की क्या बचपन से ही बच्चों को अलग कर देना चाहिए
क्योंकि अगर आप वृद्ध आश्रम जाएं तो आप पाएंगे वहां पर सबसे ज्यादा ऐसे बूढ़े लोग हैं जिनकी संताने पढ़ लिखकर बहुत ऊंचे अवदे पर हैं कारण था उनका झूठी अमीरी और झूठी शान दिखाना
आप कभी वृद्ध आश्रम में ऐसे दंपति नहीं पाएंगे जो कि मिडिल क्लास से थे या गरीब थे
निर्णय आपका है जिंदगी आपकी है आप अपनी जिंदगी के मालिक हैं की आपको कैसा बुढ़ापा चाहिए
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